
बात बहुत छोटी सी है पर जवाब नहीं मिल रहा ...........मैं कौन हूँ?
बहुत देर से मै सोच रही हों पर समझ नहीं आ रहा इसलिए मैं मौन हूँ
कभी सोचती हों माँ की प्यारी बेटी हों पर माँ की पीर समझ नही पाती ,
कभी लगता है अपने प्रिय की प्रिया हों पर प्रेम करना भी तो नही आता ,
कभी लगता है विद्यार्थी हूँ पर एक विद्यार्थी की तरह सब ग्रहण करना भी तो नहीं आता,
कभी लगता है एक मुजरिम हों पर अपना जुर्म भी तोह नही जानती ,
कभी खुद को अधुरा मानती हों पर वो खालीपन भी तो समझ मे नही आता ,
पर पूर्ण भी तो खुद को कह नहीं सकती ,क्योंकि पूर्णता क्या है मै ये भी तो नही जानती ,
तो क्या कहूँ , सिर्फ इतना की मैं एक इंसान हूँ वो जो अपने लालच में इंसानियत को भुला चुकी है ,
या ऐसी आस्तिक जो ईशवर को भी नहीं मानती ,
या वो जो स्वार्थ में अपने ही भाई-बहेन को नही पहचानती ,
वो जो रिश्ते नाते सब ठुकरा चुकी है ,
वो जो इंसानियत को अपराधों में बिखरा चुकी है ,
क्या मैं भी वो हेवान हूँ ? नहीं नहीं ,कैसे कह दूँ की मैं इंसान हूँ .........