अभिलाषा@ DESIRE.....

Always without desire we must be found, If its deep mystery we would sound; But if desire always within us be, Its outer fringe is all that we shall see.

Sunday, May 24, 2009

वो सुबह ..............


वो सुबह कभी तो आयेगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा ,
जब दुःख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा ,
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
जिस सुबह की खातिर जग से हम सब मर मर के जीते हैं ,
जिस सुबह के अमृत की धुन मे हम ज़हर के प्याले पीते हैं ,
इन भूखी प्यासी रूहों पर एक दिन तो करम फरामाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी ,
माना के अभी मेरे अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं ,
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं ,
इंसानों की इज्ज़त जब झूठे सिक्कों मे ना तोली जायेगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
दौलत के लिए जब औरत की अस्मत को ना बेचा जायेगा ,
चाहत को ना कुचला जायेगा, इज्ज़त को ना बेचा जायेगा ,
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शरमाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
बीतेंगे कभी तो दिन आखिर ये भूख के और बेकारी के ,
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर दौलत की इजरदारी के ,
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी
????????????????????
- फैज

1 Comments:

Blogger विप्लव said...

जिस सुबह की खातिर युग-युग से हम सब मर मर के जीते हैं( जिस सुबह के अमृत की धुन मे हम जहर के प्याले पीते है] वो सुबह कभी तो आयेगी] वो सुबह हमी से आयेगी...
फैज के इस अद्भुत तराने को ब्लाग पर देने के लिये शुक्रिया...

May 24, 2009 at 11:34 PM  

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