वो सुबह ..............

इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा ,
जब दुःख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा ,
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
जिस सुबह की खातिर जग से हम सब मर मर के जीते हैं ,
जिस सुबह के अमृत की धुन मे हम ज़हर के प्याले पीते हैं ,
इन भूखी प्यासी रूहों पर एक दिन तो करम फरामाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी ,
माना के अभी मेरे अरमानों की कीमत कुछ भी नहीं ,
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इंसानों की कीमत कुछ भी नहीं ,
इंसानों की इज्ज़त जब झूठे सिक्कों मे ना तोली जायेगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
दौलत के लिए जब औरत की अस्मत को ना बेचा जायेगा ,
चाहत को ना कुचला जायेगा, इज्ज़त को ना बेचा जायेगा ,
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शरमाएगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी .
बीतेंगे कभी तो दिन आखिर ये भूख के और बेकारी के ,
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर दौलत की इजरदारी के ,
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जायेगी ,
वो सुबह कभी तो आयेगी
????????????????????
1 Comments:
जिस सुबह की खातिर युग-युग से हम सब मर मर के जीते हैं( जिस सुबह के अमृत की धुन मे हम जहर के प्याले पीते है] वो सुबह कभी तो आयेगी] वो सुबह हमी से आयेगी...
फैज के इस अद्भुत तराने को ब्लाग पर देने के लिये शुक्रिया...
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